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Sunday, September 25, 2011

कर्मवीर का साक्षात्कार हिंदी दिवस पर



'किसी भाषा में बदलाव उसकी जीवंतता का प्रतीक है'
Source: Mukesh Kumar Gajendra Last Updated 01:26(14/09/11)
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deanik bhaskar

भाषा के रूप में हिन्दी की बात करते ही ढ़ेर सारे अगर-मगर दिमाग में तैरने लगते हैं। करियर से लेकर कम्यूनिकेशन तक अंग्रेजी का प्रभुत्व दिखाई देता है। लेकिन कई ऐसे भी हैं जो इस धारणा को झटके में तोड़ देते हैं। यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में हिन्दी माध्यम से 27वीं रैंक हासिल करने वाले होशंगाबाद में सहायक कलेक्टर कर्मवीर शर्मा से हिन्दी की दशा और दिशा को लेकर बातचीत की हमारे संवाददाता मुकेश कुमार गजेंद्र ने। प्रस्तुत है कुछ अंश-

अक्सर देखा जाता है कि सरकारी मशीनरी हिन्दी दिवस पर ही केवल हिन्दी सप्ताह मनाकर इतिश्री कर लेती है। ऐसे में कैसे हिन्दी को व्यवहारिक बनाया जाए?

भाषा की प्रगति व्यवहार और चलन में आने से बढ़ती है। केवल सरकारी पहल से ही भाषा की प्रगति नहीं हो सकती है। आम लोगों में इसकी उपयोगिता बढ़ानी होगी। लोगों में इसके प्रति प्रेम जगाना होगा। आर्थिक जगत में इसकी महत्ता बढ़ने से तरक्की में और तेजी आएगी। हिन्दी पत्रकारिता इसका प्रमुख उदाहरण है।

हिन्दी माध्यम से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना कितना कठिन है?


देखिए, हिन्दी माध्यम में विषय सामग्री की कमी है। इंटरनेट पर अंग्रेजी में जानकारियां उपलब्ध होती है। तैयारी में सहायक द हिन्दू जैसे अखबार अंग्रेजी में ही उपलब्ध हैं। कुल मिलाकर बेहतर सामग्री के लिए अंग्रेजी भाषा की दरकार होती है। पर हां, माध्यम ही सिर्फ चयन में भूमिका नहीं निभाता। यूपीएससी हिन्दी माध्यम के विद्यार्थियों की यथासंभव मदद करता है। जरूरी नोट्स उपलब्ध कराता है। परीक्षा में माध्यम क्या है इससे अधिक महत्वपूर्ण है कि आपकी अभिव्यक्ति कैसी है? यदि आप अपनी बात कहना नहीं जानते तो क्या अंग्रेजी क्या हिन्दी। अब लगातार हिन्दी माध्यम से अभ्यर्थी चुने जा रहे हैं। माध्यम से अधिक अभिव्यक्ति महत्व रखता है।

भाषा के आधार पर भेदभाव की बात अक्सर सामने आती है। इंटरव्यू के दौरान क्या आपने किसी तरह की भाषागत परेशानी महसूस की थी?

हां, हिन्दी माध्यम से होने की वजह से मुझे परेशानी हुई थी। मुझे अंग्रेजी आती है, इसलिए मेरे नंबर प्रभावित नहीं हुए। वहीं, मेरे कुछ दोस्तों को अंग्रेजी भाषा नहीं जानने की वजह से कम नंबर मिले थे। अंग्रेजी नहीं जानने वाला अभ्यर्थी अपनी बात पैनल के कुछ सदस्यों तक नहीं पहुंचा पाता है। नौकरी में आने के बाद कार्य तो सारा हिन्दी में होता है, लेकिन बोलचाल के लिए अंग्रेजी भाषा का ही प्रयोग ज्यादा किया जाता है।

बोलचाल और व्यवहार में हिन्दी की उपयोगित कम होने की वजह क्या है?

भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होता है। यह जितनी सरल हो, उतनी ही अच्छी होती है। हिन्दी भाषा में अंग्रेजी के शब्द बढ़े हैं। मैं इसे सकारात्मक मानता हूं। यह प्रक्रियात समस्या है। इसको संकीर्णता से नहीं, बृहद रूप में देखें। दूसरी भाषाओं से आयातित शब्द तो हिन्दी के शब्द कोष को बढ़ा रहे हैं। किसी भाषा में बदलाव उसकी जीवन्तता का प्रतीक है। उसमें परिवर्तन का विरोध उसकी जीवंतता का विरोध है। जो भाषा जितनी परिवर्तनशील है समझें कि वह उतनी ही जीवन्त है।

आजकल हिन्दी देवनागरी की बजाय रोमन में ज्यादा लिखी जाती है। इसके प्रति आपका क्या नजरिया है?


रोमन में हिन्दी लिखने के पीछे तकनीकी समस्या ज्यादा है। रोमन में लिखना देवनागरी लिपि से ज्यादा सरल है, इसलिए इसका प्रयोग ज्यादा होता है। भले ही देवनागरी सर्वाधिक वैज्ञानिक और ध्वन्यात्मक लिपि है, पर इसे तकनीकी रूप से और दक्ष बनाने की जरूरत है।

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